अधिकार और दायित्व एक समग्र के ही आयाम हैं। प्रत्येक का अधिकार दूसरे का दायित्व है। यही नागरिक बोध प्रत्येक के लिए सहज और सफल जीवन सुनिश्चित कर सकता है।
जब जन जनतांत्रिक व्यवस्था में परिपक्व होंगे तो स्वामित्व भाव स्वयमेव तिरोहित हो जाएगा और बचेगा मात्र सेवाभाव। यह स्तिथि जनतंत्र के विकास का अगला चरण है और आज की चेतना के अनुसार जनतंत्र की यात्रा का गंतव्य भी। इस दिशा में यात्रा जन प्रज्ञता पर निर्भर करेगी।
नीरज कुमार झा
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