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शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

Civilizationalism

Nationalism has been under greater focus after the decline of neoliberalism in the world. After preventing the disappearing barriers and even borders, the nations are now busy with homeland economics and geopolitics.

What is not talked about generally is Civilizanalism. The reality is that it is a more powerful sentiment than nationalism shaping global state and affairs. After Samuel Phillips Huntington's Clash of Civilizations warned about the nature of impending conflicts, concerned people around the globe rose in denial, but none did anything to prevent such a prospect. Unseen and unrealised, civilizations are racing in the direction as foreseen.

Niraj Kumar Jha

Agencies for Peace

International conflicts affect not only the people of the belligerent countries but the whole world. International agencies have not been impartial or effective so far in preventing or resolving such conflicts. The need for fair and effective international agencies for conflict resolution is critical now as the delay would cause the eruptions of more serious crises. If the next upgrade of international order takes place after greater tragedies, it would itself be a worse tragedy than whatever is tormenting us or going to trouble us human beings. 

Niraj Kumar Jha

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

दर्शन और प्रदर्शन

दर्शन को मात्र ज्ञान की विशिष्ट विधा मानना यथार्थ नहीं है। दर्शन हर व्यक्ति के जीवन का अविभाज्य आयाम है। मानव बिना जीवन दर्शन के नहीं हो सकता है। मानवीयता की आवश्यकता दर्शन को लेकर जाग्रत चेतना है।

इस संदर्भ में यह रेखांकित करने का प्रयास किया गया है कि सामान्य जन में प्रदर्शन के और उसमें निहित दर्शन को दृष्टिगत करने की क्षमता हो। प्रदर्शन के माध्यम से अनेक अमंगलकर विचार समाज के अभिकरण के चालक मूल्यों में प्रविष्ट करा दिए जाते हैं।

नीरज कुमार झा

मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

खरी बौद्धिकता

निष्कंटक उद्योग और उद्यम की धरा पर ही ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, संस्कृत, और कला फलती-फूलती है। विचारधारा या विचार जो वैयक्तिक उद्यम का विरोधी है, उसे ओछा दिखाता है, वह आत्मघात का साहित्य है। 

भारतीय परंपरा द्वेष रहित सुख-समृद्धि की आकांक्षा और जीवन का पोषक रही है। पाश्चात्य जगत में आधुनिकता भयावह रक्तपात के द्वारा आयी है। भारत में सापेक्षिक आधुनिकता का सहज चलन इसकी तार्किकता की परंपरा की पुष्टि करता है।

बहुतायत में बौद्धिक फुनगी का महिमामंडन करते है। जड़, तना, शाखाओं सहित वृक्ष के वृहत्तर यथार्थ की अवहेलना और अवमानना उनकी प्रकृति में है। यही आधिपत्य की दीर्घावधि जनित दासता की प्रवृत्ति है जो उन्हें सत्य को देखने से डराती रही है।

नीरज कुमार झा

सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

पहचान की पहचान

पहचान दूसरा बड़ा सवाल हमेशा से रहा है
सवाल यह भी है कि पहचान की पहचान क्या है
पहचान क्यों, किनके लिए, और किनसे
यह सवाल शायद ही उठा हो कभी

नीरज कुमार झा



Studying Abroad

Many scholars go abroad to research India and return home on field trips. This may have some uses, but what may be more useful for India is that Indians go abroad to study those countries. It is good that we make others know us, but more important is we know them.
 
Niraj Kumar Jha

शनिवार, 19 अक्टूबर 2024

सहारा बेसहारा

जो बेकाम है, उसकी पीड़ा बड़ी है
जो काम पर है, वह भी पीड़ित है
पानी है तो किनारा नहीं है
किनारा है तो पानी नहीं है
सहारा के लिए बनना सहारा है
यही सीखने-सीखाने की जरूरत है

नीरज कुमार झा

सत्य जीवन

सत्य अज्ञेय, बोध भी सत्य है 
निरंतर सत्य, अंतर भी सत्य है 
जीवन सत्य, सनातन है  
आत्ममय, यह चराचर है 
धर्म एकता, सौहार्द, और सहयोग है 
अधर्म अनेकता, घृणा, और वैमनस्य है 
अधर्म रूग्णता, निवारण उसका धर्म है
धर्म सत्य,  धर्म कर्म जीवन है

नीरज कुमार झा 




शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024

Truths

The best truths are what one experiences first-hand, but even then that may not be the same for others. Many things we do not experience, but are made to be experienced. The selection of the to-be-experienced and the intent of the presenters makes a difference. Even if one experiences something on their own, the critical factor is not the subject, but the cognitive orientation of the experiencer. Different people respond differently to the same thing.

By and large, barring some very basic things, like this is a bat and that is a ball, truths are what we favour and lies are what we disfavour.

What are objective truths then? It is mutuality. It is the sense of respectability and responsibility towards others. It is something human agency endeavours to nurture in each. A crisis looms large when such endeavours do not materialise or insufficiently materialise.

Truth is truthfulness

Niraj Kumar Jha

गुरुवार, 17 अक्टूबर 2024

Means or End

Social relations, creative engagements, and productive activities are not means to some end but end by themselves. Life is but meaning and purpose. At the same time, communities owe this responsibility. The unengaged often bring hell to others. Schools must train and motivate undergraduates for them, and municipalities must care for and facilitate them.
 
Niraj Kumar Jha

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

Nationalism

Nationalism is a community's awareness of and commitment to itself. It is realised, recognised, institutionalised, and structured sovereign unity for justice and excellence by one and all.
 
Niraj Kumar Jha

शब्दों की खेती

शब्दों की खेती करते 
उगाते असंभव के पौध
देख प्रफुल्लित होते
बोधहीनता के कंटकों में उलझे लोग

नीरज कुमार झा

Industrialists

Industries form the backbone of a nation. Mind it, it is not only bone but also bonemarrow. Our industrialists are real heroes. They could outwit the colonial regime to flourish and survive the socialist spell. And, in this lofty endeavour, they helped the rise of nationalism and nation-building.
The capitalism they brought led democracy to grow and deepen its roots. In other colonies, where capitalism could not take root, democracy failed to emerge or survive.
 
Niraj Kumar Jha

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

निंदक

निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय

आदर्श स्थिति यह है कि विज्ञों और सज्जनों के मध्य श्रेष्ठ सत्य के लिए सम्मानपूर्वक संवाद होता रहे, लेकिन निंदक की भी बौद्धिकता के लिए उपादेयता है। निंदा की प्रवृत्ति बौद्धिकता के अभाव और ईर्ष्या भाव से जनित होती है। निंदक विचारों में कमियाँ बताता है और तथ्यों की गलत व्याख्या करता है। प्रतिबद्ध विचारक उसको दृष्टिगत करते हुए अपने विचारों का परिष्कार करेगा और उसकी सही व्याख्या कर उसे और बोधगम्य बनाएगा।

नीरज कुमार झा

सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

Towards Light

What one is made to believe is the fountain of all their reasonings. One can endlessly argue logically, that is being faithful to one's faculty, for what they do not reason but believe to be true. Rationality ends up serving beliefs. Therefore, ...

'तमसो मा ज्योतिर्गमय'

Concerned people always work for a clearer view. Darkness is the natural state, light is an endeavour.

Niraj Kumar Jha

रविवार, 6 अक्टूबर 2024

सम्मान

अभी मेरे एक व्याख्यान का विषय 'सम्मान' था। मैंने उसमें इसके सैद्धांतिक पक्षों के साथ फेसबुक पर बारम्बार अपनी लिखी कई बातों को रखा।
 
1. सम्मान मानवमात्र की गरिमा और समतावादी दृष्टिकोण जनित भावना और अभिवादन है।
2. प्रत्येक अन्य के प्रति सम्मान की भावना आत्मसम्मान का प्रकट रूप है।
3. आत्मसम्मान और अहंकार में अंतर है। दंभी दूसरे को नीचा दिखाना चाहता है और स्वयं को ऊँचा दिखाता है।
4. अधिकतर लोग सम्मान को लेकर सहज नहीं होते हैं। वे अन्य को अपने से नीचे अथवा ऊपर देख पाते हैं।
5. इसका कारण मानववाद की समूहवाद के विचारधारात्मक प्रतिरोध के कारण तदनुरूप अर्थव्यवस्था की असावयवी प्रकृति और जनवैचारिकी में अपर्याप्त मान्यता है।
6. सम्मान के दृष्टिकोण से शिक्षाशास्त्र की प्रकृति में संशोधन और अन्य के साथ संस्थाओं में पदस्थ सुधी जनों की संस्था के माध्यम से सक्रियता अभीष्ट है। 

नीरज कुमार झा

शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

भाषा चातुर्य और मर्मज्ञता

भाषा चातुर्य और मर्मज्ञता दो भिन्न परिघटनाएँ हैं और आवश्यक नहीं कि कोई व्यक्ति दोनों से युक्त हो। भाषाई व्यूह से असंपृक्त रहते हुए प्रासंगिक मंगलकारी तथ्यों का बोध प्राप्त करना भी गहन शिक्षा से ही संभव है। यहाँ यह स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि शिक्षा व्यक्ति के स्वयं का प्रयास है। जो व्यक्ति सीखने से विमुख है, उसका मार्गदर्शन कोई गुरु नहीं कर सकते।
 
नीरज कुमार झा

शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

सुनना

लोग बोलना चाहते हैं। इससे इनके अस्तित्व की पुष्टि होती है। बोलने से उन्हे अपने व्यक्तित्व और कृतित्व की मान्यता का बोध होता है। वे अपनी पीड़ा अथवा कुंठा से राहत पाते हैं। लोग अपनी खुशी की बातें साझा कर अपनी खुशी को विस्तार देते हैं। कुछ लोग बोलकर दूसरे को दुखी कर अथवा उनपर अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर अपने अहम का पोषण करते हैं।
 
सुनना किसी भी स्थिति में बोलने वाले की सहायता करना है। दंभी लोगों को सुनना अत्यंत कष्टप्रद होता है। मुझे यहाँ साधु और बिच्छू की कहानी याद आती है। हालाँकि सिर्फ किसी व्यक्ति को सुनना, बनायी बातों को नहीं, अधिकतर सहज नहीं होता है। अतएव सुनना सेवा है।
 
नीरज कुमार झा

सुनना

सुनना सेवा है।

बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

बौद्धिक पारितंत्र

बौद्धिकता एक पारितंत्र हैं जिसके अंतर्गत ही बुद्धिमत्ता क्या है, निर्धारित होती है। विलक्षण जन विशिष्ट पारितंत्र के निर्माण के सूत्रधार होते हैं। आधुनिक युग में ऐसे पारितंत्रों के सूत्रधारों के रूप में महात्मा गांधी, जॉन लॉक, और कार्ल मार्क्स को देखा जा सकता है। महात्मा गांधी संवेदनायुक्त मानववाद, जॉन लॉक क्रियात्मक मानववाद, और कार्ल मार्क्स समूहवाद के पैरोकार हैं। आधुनिक समाजों में ये तीन पारितंत्र प्रभावी हैं। वर्तमान में तीनों का प्रभाव है, लेकिन प्रथम भविष्य है, द्वितीय वर्तमान, और तृतीय भूत। 

नीरज कुमार झा

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

कल्याण सूत्र

राष्ट्रों की सुख-समृद्धि का यत्न वास्तव में एक निरंतर चलाने वाला युद्ध है। सुख-समृद्धि की दशा में यथास्थिति का विकल्प नहीं होता; विकास के लिए सक्रिय रहना होता है अथवा ह्रास की पीड़ा में तड़पना पड़ता है। अनेक बुद्धिवृत्तिक मस्तिष्क के प्रयोग में प्रमाद के कारण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को ही सकल मान लेते हैं। वास्तव में विकास असंपृक्त द्वीपीय प्रयास नहीं है; यह अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में बढ़त लेने हेतु सघन उद्यम की निरन्तरता है। इसमें प्रतियोगियों की क्षमताओं और निर्बलताओं को समझने का नैदानिक (क्लिनिकल) तरीका रखना पड़ता है और उसको दृष्टिगत करते हुए अपनी जयी रणनीति रचनी पड़ती है। दूसरी तरफ, अपनी क्षमताओं की परख और वृद्धि के लिए प्रयास वैसे ही होना चाहिए जैसा कि युद्ध के लिए होता है। यह युद्ध ही है और अपरिहार्य है। यहाँ तटस्थता नाम की नीति पराजय की स्वीकार्यता है। विकल्प मात्र यही हैं; जीतो और दुनिया पर राज करो अथवा हारो और दुनिया की चाकरी करो। इस युद्ध में जय उन देशों की होती है जिसके नागरिक शिक्षित, सजग, सक्रिय और निष्ठावान होते हैं, और प्रत्येक घटक उद्देश्यपरक, कुशल, और सक्षम। उक्त विषय सभी के लिए और विशेष कर बुद्धिवृत्तिकों के लिए उनके समस्त सरोकारों में सर्वोपरि होना चाहिए लेकिन उनमें से अपवादों को छोड़कर सभी शुतुरमुर्ग बने हुए हैं।

नीरज कुमार झा