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शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

सुनना

लोग बोलना चाहते हैं। इससे इनके अस्तित्व की पुष्टि होती है। बोलने से उन्हे अपने व्यक्तित्व और कृतित्व की मान्यता का बोध होता है। वे अपनी पीड़ा अथवा कुंठा से राहत पाते हैं। लोग अपनी खुशी की बातें साझा कर अपनी खुशी को विस्तार देते हैं। कुछ लोग बोलकर दूसरे को दुखी कर अथवा उनपर अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर अपने अहम का पोषण करते हैं।
 
सुनना किसी भी स्थिति में बोलने वाले की सहायता करना है। दंभी लोगों को सुनना अत्यंत कष्टप्रद होता है। मुझे यहाँ साधु और बिच्छू की कहानी याद आती है। हालाँकि सिर्फ किसी व्यक्ति को सुनना, बनायी बातों को नहीं, अधिकतर सहज नहीं होता है। अतएव सुनना सेवा है।
 
नीरज कुमार झा

सुनना

सुनना सेवा है।

बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

बौद्धिक पारितंत्र

बुद्धि एक पारितंत्र हैं जिसके अंतर्गत ही बौद्धिकता क्या है, निर्धारित होती है। विलक्षण जन विशिष्ट पारितंत्र के निर्माण के सूत्रधार होते हैं। आधुनिक युग में ऐसे पारितंत्रों के सूत्रधारों के रूप में महात्मा गांधी, जॉन लॉक, और कार्ल मार्क्स को देखा जा सकता है। महात्मा गांधी संवेदनायुक्त मानववाद, जॉन लॉक क्रियात्मक मानववाद, और कार्ल मार्क्स समूहवाद के पैरोकार हैं। आधुनिक समाजों में ये तीन पारितंत्र प्रभावी हैं। वर्तमान में तीनों का प्रभाव है, लेकिन प्रथम भविष्य है, द्वितीय वर्तमान, और तृतीय भूत। 

नीरज कुमार झा

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

कल्याण सूत्र

राष्ट्रों की सुख-समृद्धि का यत्न वास्तव में एक निरंतर चलाने वाला युद्ध है। सुख-समृद्धि की दशा में यथास्थिति का विकल्प नहीं होता; विकास के लिए सक्रिय रहना होता है अथवा ह्रास की पीड़ा में तड़पना पड़ता है। अनेक बुद्धिवृत्तिक मस्तिष्क के प्रयोग में प्रमाद के कारण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को ही सकल मान लेते हैं। वास्तव में विकास असंपृक्त द्वीपीय प्रयास नहीं है; यह अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में बढ़त लेने हेतु सघन उद्यम की निरन्तरता है। इसमें प्रतियोगियों की क्षमताओं और निर्बलताओं को समझने का नैदानिक (क्लिनिकल) तरीका रखना पड़ता है और उसको दृष्टिगत करते हुए अपनी जयी रणनीति रचनी पड़ती है। दूसरी तरफ, अपनी क्षमताओं की परख और वृद्धि के लिए प्रयास वैसे ही होना चाहिए जैसा कि युद्ध के लिए होता है। यह युद्ध ही है और अपरिहार्य है। यहाँ तटस्थता नाम की नीति पराजय की स्वीकार्यता है। विकल्प मात्र यही हैं; जीतो और दुनिया पर राज करो अथवा हारो और दुनिया की चाकरी करो। इस युद्ध में जय उन देशों की होती है जिसके नागरिक शिक्षित, सजग, सक्रिय और निष्ठावान होते हैं, और प्रत्येक घटक उद्देश्यपरक, कुशल, और सक्षम। उक्त विषय सभी के लिए और विशेष कर बुद्धिवृत्तिकों के लिए उनके समस्त सरोकारों में सर्वोपरि होना चाहिए लेकिन उनमें से अपवादों को छोड़कर सभी शुतुरमुर्ग बने हुए हैं।

नीरज कुमार झा