पृष्ठ

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

दर्शन और प्रदर्शन

दर्शन को मात्र ज्ञान की विशिष्ट विधा मानना यथार्थ नहीं है। दर्शन हर व्यक्ति के जीवन का अविभाज्य आयाम है। मानव बिना जीवन दर्शन के नहीं हो सकता है। मानवीयता की आवश्यकता दर्शन को लेकर जाग्रत चेतना है।

इस संदर्भ में यह रेखांकित करने का प्रयास किया गया है कि सामान्य जन में प्रदर्शन के और उसमें निहित दर्शन को दृष्टिगत करने की क्षमता हो। प्रदर्शन के माध्यम से अनेक अमंगलकर विचार समाज के अभिकरण के चालक मूल्यों में प्रविष्ट करा दिए जाते हैं।

नीरज कुमार झा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें