बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय
आदर्श स्थिति यह है कि विज्ञों और सज्जनों के मध्य श्रेष्ठ सत्य के लिए सम्मानपूर्वक संवाद होता रहे, लेकिन निंदक की भी बौद्धिकता के लिए उपादेयता है। निंदा की प्रवृत्ति बौद्धिकता के अभाव और ईर्ष्या भाव से जनित होती है। निंदक विचारों में कमियाँ बताता है और तथ्यों की गलत व्याख्या करता है। प्रतिबद्ध विचारक उसको दृष्टिगत करते हुए अपने विचारों का परिष्कार करेगा और उसकी सही व्याख्या कर उसे और बोधगम्य बनाएगा।
नीरज कुमार झा
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