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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

शब्दों की खेती

शब्दों की खेती करते 
उगाते असंभव के पौध
देख प्रफुल्लित होते
बोधहीनता के कंटकों में उलझे लोग

नीरज कुमार झा

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