1. सम्मान मानवमात्र की गरिमा और समतावादी दृष्टिकोण जनित भावना और अभिवादन है।
2. प्रत्येक अन्य के प्रति सम्मान की भावना आत्मसम्मान का प्रकट रूप है।
3. आत्मसम्मान और अहंकार में अंतर है। दंभी दूसरे को नीचा दिखाना चाहता है और स्वयं को ऊँचा दिखाता है।
4. अधिकतर लोग सम्मान को लेकर सहज नहीं होते हैं। वे अन्य को अपने से नीचे अथवा ऊपर देख पाते हैं।
5. इसका कारण मानववाद की समूहवाद के विचारधारात्मक प्रतिरोध के कारण तदनुरूप अर्थव्यवस्था की असावयवी प्रकृति और जनवैचारिकी में अपर्याप्त मान्यता है।
6. सम्मान के दृष्टिकोण से शिक्षाशास्त्र की प्रकृति में संशोधन और अन्य के साथ संस्थाओं में पदस्थ सुधी जनों की संस्था के माध्यम से सक्रियता अभीष्ट है।
नीरज कुमार झा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें