पृष्ठ

मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

खरी बौद्धिकता

निष्कंटक उद्योग और उद्यम की धरा पर ही ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, संस्कृत, और कला फलती-फूलती है। विचारधारा या विचार जो वैयक्तिक उद्यम का विरोधी है, उसे ओछा दिखाता है, वह आत्मघात का साहित्य है। 

भारतीय परंपरा द्वेष रहित सुख-समृद्धि की आकांक्षा और जीवन का पोषक रही है। पाश्चात्य जगत में आधुनिकता भयावह रक्तपात के द्वारा आयी है। भारत में सापेक्षिक आधुनिकता का सहज चलन इसकी तार्किकता की परंपरा की पुष्टि करता है।

बहुतायत में बौद्धिक फुनगी का महिमामंडन करते है। जड़, तना, शाखाओं सहित वृक्ष के वृहत्तर यथार्थ की अवहेलना और अवमानना उनकी प्रकृति में है। यही आधिपत्य की दीर्घावधि जनित दासता की प्रवृत्ति है जो उन्हें सत्य को देखने से डराती रही है।

नीरज कुमार झा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें